आंखों में लौटी खुशियों की झिलमिलाहट
हेवी वेट के कारण छोटा हाथी पड गया था नाम…अब देखते ही रह जाते हैं लोग
उनकी आंखों में खुशियों की झिलमिलाहट समन्दर की तरह हिलौरे मारती दिखाई देती हैं। पूरे परिवार का दामन खुशियों से भर गया है। पहले ना खाना पका पाती थीं, ना कपडे धो पाती थी, ना ठीक से सो पाती थीं, ना चल पाती थी औऱ ना ही ट्रेन में चढ पाती थी…दुनिया भर की तमाम मुसीबतों ने तो घेरा ही था साथ ही लोगों के ताने सुन-सुनकर कान पक जाते थे। लेकिन महज एक फैसले ने जिंदगी को ऐसे यू-टर्न कर दिया कि अब हर सफर आसान लगने लगा।
बदलाव की ये कहानी गुजरात के बडौदा जिले के छोटे से गांव डेथान की रहने वाली 48 साल की रुखसाना बानो की है। रुखसाना की एक साल पुरानी तस्वीर देखकर आप उन्हे पहचानने से इनकार कर देगें। वो इतनी मोटी थी कि गांव में और समाज में उन्हे पीठ पीछे छोटा हाथी के नाम से पुकारा जाता था। उनके मोटापे से वो इस कदर परेशान हो चुकी थीं कि उनका जीना ही दूभर हो गया था। उनके पडोस में रहने वाली उनकी एक दोस्त ने तो साफ-साफ भविष्यवाणी कर दी थी कि साल-दो साल में तेरा उपर का टिकट कटना तय है। रुखसाना भी भीतर ही भीतर घुटने लगी थी। वो ना चल-फिर पाती थी ना ट्रेन का सफर कर पाती थी। गांव में ही बगैर प्लेटफार्म वाला छोटा सा स्टेशन है। यहां से एक तरफ भरुच तो दूसरी तरफ बडौदा है। दोनो ही जगह का 10 रुपये किराया लगता है लेकिन बगैर प्लेटफार्म के ट्रेन में सवार नही हो पाती थी जिससे 500 से 600 रुपये भाडा देकर प्रायवेट आटो करना पडता था। पति गांची सलीम अहमद अपनी पत्नी की इस परेशानी से बुरी तरह परेशान थे। वो बताते हैं कि उन्हे ही घर का सारा काम करना पडता था। पत्नी को हर तीन महिने में सांस की परेशानी के चलते बडौदा अस्पताल ले जाना पडता था जहां एक-एक हफ्ते भर्ती रहना पडता था। पत्नी को शुगर, ब्लडप्रेशर, हाथ-पैरों में सूजन औऱ सांस की तकलीफ होती थी।
रुखसाना बानो की शादी साल 2001 में हुई थी। उस वक्त उनका वजन 60 किलो था। रुखसाना दिखने में बेहद खुबसूरत थीं। शादी के बाद गोद सूनी थी। घर में किलकारियों की गूंज के लिये ये दम्पत्ति कई डॉक्टर्स औऱ अस्पतालों के बीच भटकते रहे। जिसने जो कहा इन्होनें वो किया। दवाईयां औऱ आयुर्वेद की जडी-बुटियां भी खूब खाईं। महावारी भी बंद हो गई। देखते ही देखते साल 2009 से 2011 के बीच वजन इतनी तेजी से बढा कि कांटा पूरे शतक तक जा पंहुचा।
रुखसाना औऱ गांची सलीम दोनों ने मोटापा दूर करने की हर मुमकिन कोशीशें की लेकिन सब नाकाम साबित हुई। 5-6 साल ऐसे गुजरे मानों कारागार की सजा सुना दी गई हो। बेरियाट्रिक सर्जरी के बारे में सुना था लेकिन मालुम नही था। किसी तरह रुखसाना औऱ सलीम को इंदौर के मोहक अस्पताल में सर्जरी की सफलताओं के बारे में पता चला। जब यहां आये तो बेहद डरे हुए थे लेकिन यहां की देखभाल औऱ पारिवारिक वातवारण ने मानों उनका आधा बोझ कम कर दिया। 3 जून 2016 को रुखसाना की सर्जरी हुई। महज एक साल कुछ महिनों में रुखसाना का वजन अब 62 किलो है। गांव के लोग, रिश्तेदार औऱ पडोस मे रहने वाले सभी अचरज में हैं आखिर ये कमाल हुआ कैसे। अब दोनों मियां-बीबी के चेहरों की मुस्कान देखकर उनकी खुशनुमा जिंदगी का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।